Up Me Bawal: उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों गर्म है। बाराबंकी की Ramswaroop Memorial University से शुरू हुआ विवाद अब राज्य की सत्ता के गलियारों तक पहुँच गया है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के कार्यकर्ताओं पर यूपी पुलिस के लाठीचार्ज ने न सिर्फ संगठन को आक्रोशित किया बल्कि भाजपा के भीतर की गुटबाजी को भी उजागर कर दिया है।
Up Me Bawal: विवाद की जड़ – लॉ कोर्स की मान्यता
मामले की शुरुआत यूनिवर्सिटी के लॉ कोर्स की मान्यता से हुई। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) से 2022 के बाद इस कोर्स को मान्यता नहीं मिली थी। इसी मुद्दे पर ABVP कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया। लेकिन विडंबना यह रही कि 3 सितंबर को BCI ने कोर्स को मान्यता दे दी, जबकि प्रदर्शन 1 सितंबर को ही शुरू हो चुका था।
इस बीच दो छात्रों के निष्कासन ने आग में घी का काम किया। प्रदर्शन तेज हुआ और पुलिस-छात्रों के बीच भिड़ंत हो गई। वीडियो सामने आए जिनमें 10 –12 पुलिसकर्मी मिलकर एक ABVP कार्यकर्ता को बेरहमी से पीटते दिखाई दिए।
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मंत्री का विवादित बयान
विवाद को और हवा तब मिली जब योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने ABVP कार्यकर्ताओं को “गुंडा” करार दे दिया। इसके बाद प्रदेश भर में ABVP ने विरोध तेज कर दिया—शव यात्राएं, पुतला दहन और धरना-प्रदर्शन तक।
राजभर के बेटे को माफी मांगनी पड़ी लेकिन इससे माहौल शांत नहीं हुआ। सवाल यह भी उठा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सीधा विरोध क्यों नहीं हो रहा। क्या ABVP कार्यकर्ताओं को डर है कि दोबारा पुलिस का डंडा पड़ेगा?
सत्ता और विश्वविद्यालय के रिश्ते
इस विवाद का एक और पहलू है यूनिवर्सिटी के चेयरमैन पंकज अग्रवाल। उनके बारे में लखनऊ से दिल्ली तक चर्चाएं रहती हैं कि उनका ब्यूरोक्रेसी और IAS अधिकारियों से गहरा मेलजोल है। नाम सबसे ज्यादा लिया जा रहा है संजय प्रसाद का, जो मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव हैं और गृह व सूचना विभाग देखते हैं।
सोशल मीडिया पर आरोप लगे कि पंकज अग्रवाल और संजय प्रसाद की नज़दीकी की वजह से पुलिस ने छात्रों पर इतना सख्त एक्शन लिया। हालाँकि इस दावे की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई, लेकिन गुस्से में कई कार्यकर्ताओं ने पोस्ट लिखे जिन्हें बाद में डिलीट करना पड़ा।
बीजेपी की गुटबाजी सतह पर
ABVP भाजपा का कोर संगठन माना जाता है। पार्टी की रीढ़ कहें तो गलत नहीं होगा, क्योंकि संगठन के ज्यादातर बड़े नेता इसी विंग से निकले हैं। लेकिन इस बार कार्यकर्ताओं की पिटाई के बाद पार्टी के अंदरूनी समीकरण भी उजागर हो गए।
उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक जैसे नेता अस्पताल में घायलों से मिलने पहुँचे, जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके नज़दीकी मंत्री दूरी बनाए रहे। यही नहीं, ABVP से निकले मंत्री—स्वतंत्र देव सिंह, दयाशंकर सिंह और सूर्य प्रताप शाही भी कार्यकर्ताओं से मिलने अस्पताल नहीं पहुँचे।
यहाँ से साफ दिखता है कि भाजपा के भीतर गुटबाजी कितनी गहरी है। योगी के खेमे और दूसरे नेताओं के बीच शक्ति संतुलन की जंग लंबे समय से जारी है।
प्रशासन पर सवाल
जांच के लिए अयोध्या के IG प्रवीण कुमार और डिविजनल कमिश्नर को जिम्मेदारी दी गई। शुरुआती रिपोर्ट के आधार पर कुछ पुलिसकर्मी सस्पेंड भी किए गए। लेकिन सवाल जस का तस है—क्या यह कार्रवाई सिर्फ दबाव में हुई?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रशासन ने यूनिवर्सिटी प्रबंधन पर शुरू से सख्ती नहीं दिखाई। नतीजतन पुलिस ने छात्रों पर ज्यादा बल प्रयोग कर दिया। इससे यह संदेश गया कि सरकार ने अपने ही संगठन के कार्यकर्ताओं को दबा दिया।
नतीजा और संदेश
घटना चाहे जितनी भी बड़ी या छोटी क्यों न हो, लेकिन इससे तीन बड़े संदेश निकले हैं:
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ABVP बनाम सरकार का टकराव – भाजपा की रीढ़ माने जाने वाले संगठन के साथ टकराव पार्टी के लिए खतरनाक संकेत है।
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गुटबाजी का खुलासा – मुख्यमंत्री और दूसरे मंत्रियों की अलग-अलग लाइन इस मामले में साफ दिखी।
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ब्यूरोक्रेसी का दखल – संजय प्रसाद और पंकज अग्रवाल का नाम बार-बार आना दिखाता है कि प्रशासन और राजनीति का मेल विवाद को और उलझा रहा है।
ABVP कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज सिर्फ एक यूनिवर्सिटी का विवाद नहीं है। यह घटना भाजपा की अंदरूनी राजनीति, सत्ता संघर्ष और संगठन-सत्ता के रिश्तों की झलक है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि योगी सरकार इस संकट को कैसे संभालती है, क्या संगठन को मनाकर स्थिति काबू में करेगी या यह टकराव और गहरा होगा।
ये रिपोर्ट डिजिटल में प्रसिद्ध न्यूज़ चैनल लल्लनटॉप के ०६ सितम्बर २०२५ के नेता नगरी शो से जानकारी लेकर तैयार की गयी है जिसका विडिओ निचे लगा हुआ है, इस रिपोर्ट कि फैक्ट सिर्फ यही से लिए गए है।