Judicial Training का आदेश, Supreme Court ने कहा– अदालतों ने गंभीरता को नजरअंदाज किया

Supreme Court, Judicial Training: भारत के न्यायिक इतिहास में अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं जहां सुप्रीम कोर्ट निचली अदालतों के आदेशों पर सख्त टिप्पणी करता है। 29 सितंबर 2025 को एक ऐसा ही मामला तब सुर्खियों में आया जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की निचली अदालत

EDITED BY: Vishal Yadav

UPDATED: Monday, September 29, 2025

Judicial Training का आदेश, Supreme Court ने कहा– अदालतों ने गंभीरता को नजरअंदाज किया

Supreme Court, Judicial Training:  भारत के न्यायिक इतिहास में अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं जहां सुप्रीम कोर्ट निचली अदालतों के आदेशों पर सख्त टिप्पणी करता है। 29 सितंबर 2025 को एक ऐसा ही मामला तब सुर्खियों में आया जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की निचली अदालत और हाई कोर्ट के बेल ऑर्डर्स को खारिज करते हुए दो जजों को जुडिशियल ट्रेनिंग पर भेजने का आदेश दिया। यह मामला एक दंपति से जुड़ा है जिन पर ₹6 करोड़ की ठगी का गंभीर आरोप है।

मामला क्या है?

साल 2017 में दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि एक कपल ने जमीन दिलाने के नाम पर उनसे ₹1 करोड़ 90 लाख लिए, लेकिन न तो जमीन दिलाई और न ही पैसा लौटाया। बाद में पता चला कि जिस जमीन का सौदा दिखाया गया था, वह पहले ही किसी और को बेची जा चुकी थी।

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Judicial Training का आदेश, Supreme Court ने कहा– अदालतों ने गंभीरता को नजरअंदाज किया

कंपनी का दावा है कि ब्याज और अन्य चार्ज जोड़ने पर अब उनकी रकम ₹6 करोड़ के पार पहुंच चुकी है। 2018 में इस मामले में एफआईआर दर्ज हुई। कपल ने 2023 में अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) मांगी, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट ने उनके गलत बर्ताव और झूठे वादों को देखते हुए खारिज कर दिया।

बेल कैसे मिली?

दिल्ली की निचली अदालत ने नवंबर 2023 में कपल को यह कहते हुए जमानत दे दी कि चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और अब हिरासत की जरूरत नहीं है। अगस्त 2024 में सेशंस कोर्ट और फिर हाईकोर्ट ने भी इस बेल ऑर्डर को बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट का गुस्सा क्यों फूटा?

जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एस.बी.एन. भट्टी की बेंच ने माना कि निचली अदालतों ने मामले की गंभीरता को बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जमानत का फैसला केवल औपचारिकताओं पर नहीं बल्कि केस के वास्तविक तथ्यों और आरोपी के बर्ताव पर होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि—

  • निचली अदालत और सेशंस कोर्ट ने कानूनी नियमों का पालन नहीं किया।

  • पुलिस जांच अधिकारी की भूमिका भी संदिग्ध है, जैसे आरोपियों को बचाने का प्रयास हुआ हो।

  • अक्टूबर 2023 में आरोपी बिना किसी औपचारिक आदेश के अदालत से जाने दिए गए, जिसे गंभीर गलती माना गया।

Judicial Training का आदेश, Supreme Court ने कहा– अदालतों ने गंभीरता को नजरअंदाज किया

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

  • आरोपियों की बेल रद्द की गई और उन्हें दो हफ्तों में सरेंडर करने का निर्देश दिया गया।

  • दिल्ली पुलिस कमिश्नर को आदेश दिया गया कि वे खुद जांच अधिकारी के कामकाज की समीक्षा करें और जरूरी कार्रवाई करें।

  • संबंधित दो जजों को कम से कम 7 दिन दिल्ली जुडिशियल एकेडमी में ट्रेनिंग लेने का आदेश दिया गया।

क्यों अहम है यह फैसला?

यह मामला बताता है कि न्याय व्यवस्था में छोटी सी लापरवाही भी कैसे बड़े अपराधियों को बचा सकती है। सुप्रीम कोर्ट का यह सख्त कदम न केवल निचली अदालतों के लिए सीख है बल्कि जांच एजेंसियों के लिए भी चेतावनी है कि न्याय की आड़ में लापरवाही या पक्षपात बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

बिहार से लेकर दिल्ली तक हाल के दिनों में कई बड़े घोटाले सामने आए हैं। ऐसे में जनता की नजर न्यायपालिका पर ही रहती है। यह आदेश भरोसा दिलाता है कि अगर निचली अदालतें या जांच एजेंसियां ढिलाई बरतती हैं तो सुप्रीम कोर्ट सख्ती से दखल देगा।

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Source – Live Law
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