Mobile Data as Essential Service: भारत में मोबाइल डाटा अब सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी की ज़रूरत बन चुका है। ऑनलाइन पढ़ाई, डिजिटल पेमेंट, सरकारी योजनाओं की जानकारी, स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर कृषि संबंधी जानकारी तक—हर चीज़ मोबाइल इंटरनेट से जुड़ी है। ऐसे में देश की प्रमुख टेलीकॉम कंपनियों ने सरकार से मांग की है कि मोबाइल डाटा को “Essential Service” घोषित किया जाए और स्पेक्ट्रम की कीमतें घटाई जाएं।
गांव बनाम शहर: उल्टा सिस्टम क्यों?
टेलीकॉम कंपनियों का कहना है कि गांव में रहने वाले लोग शहरों की तुलना में ज़्यादा मोबाइल डाटा इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें ज़्यादा पैसे चुकाने पड़ते हैं। ग्रामीण इलाकों में ब्रॉडबैंड कनेक्शन आसानी से उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए लोगों को केवल मोबाइल डाटा पर निर्भर रहना पड़ता है। वहीं, बड़े शहरों के अमीर तबके को सस्ता इंटरनेट इसलिए मिलता है क्योंकि वे ब्रॉडबैंड और वाई-फाई का इस्तेमाल कर पाते हैं।
यह स्थिति गरीब उपभोक्ताओं पर बोझ डाल रही है। गांव के किसान, छात्र और मज़दूर जो मोबाइल डाटा से जुड़े हैं, उन्हें महंगे पैक खरीदने पड़ते हैं। जबकि उन्हीं पैक्स की तुलना में शहरों में रहने वाले उपभोक्ता कम खर्च करके इंटरनेट का बेहतर इस्तेमाल कर पाते हैं।
कंपनियों का तर्क: स्पेक्ट्रम और टैक्स में कटौती
Jio और Airtel जैसी कंपनियां पहले से ही 5G सेवाएं लॉन्च कर चुकी हैं, लेकिन उन्हें अभी तक सही तरीके से मोनेटाइज नहीं कर पा रही हैं। यही वजह है कि ये कंपनियां बंडल प्लान (OTT और थर्ड पार्टी सर्विसेज के साथ) बेच रही हैं।
अब उनका कहना है कि अगर सरकार स्पेक्ट्रम की कीमतें और टैक्स घटा दे तो डाटा पैक सस्ते किए जा सकते हैं। इससे गरीब और ग्रामीण उपभोक्ताओं को बड़ी राहत मिलेगी।
2G से 6G तक का अंतर – डिजिटल डिवाइड
आज भी देश के लगभग 20% लोग 2G या कीपैड वाले फोन इस्तेमाल कर रहे हैं। कई लोग मजबूरी में इन फोन पर टिके हुए हैं—या तो उनके पास स्मार्टफोन खरीदने के पैसे नहीं हैं, या फिर उन्हें डिजिटल स्किल की कमी है। ऐसे में जब भारत 6G की बात कर रहा है, वहां लाखों लोग अभी भी 2G तक सीमित हैं।
इस डिजिटल डिवाइड को खत्म करने के लिए ज़रूरी है कि सरकार मोबाइल इंटरनेट को सस्ता और आसान बनाए। इससे न सिर्फ शिक्षा और सरकारी योजनाओं की पहुंच बढ़ेगी, बल्कि डिजिटल इंडिया मिशन को भी मजबूती मिलेगी।
ओनली कॉलिंग और सस्ते पैक की दरकार
एक और बड़ी समस्या यह है कि कॉलिंग-ओनली प्लान बेहद महंगे हैं। कंपनियां ₹189 या उससे ऊपर के प्लान ऑफर कर रही हैं, जबकि आम लोगों का मानना है कि केवल कॉलिंग प्लान ₹50 से कम होना चाहिए। वहीं, सिर्फ वैलिडिटी प्लान ₹30 तक मिलना चाहिए, ताकि गरीब उपभोक्ता अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी कर सकें।
मोबाइल डाटा आज लग्ज़री नहीं बल्कि ज़रूरत है। गांव के छात्रों, किसानों और मज़दूरों के लिए इंटरनेट ही जानकारी और अवसरों का एकमात्र माध्यम है। ऐसे में सरकार और टेलीकॉम कंपनियों को मिलकर ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिससे मोबाइल डाटा सस्ता और सबके लिए सुलभ हो सके।