GST on Health and Life Insurance: हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस पर GST खत्म क्या सच में मिलेगा फायदा?

GST on Health and Life Insurance: 22 सितंबर से Health and Life Insurance पर जीएसटी (GST) खत्म होने जा रहा है। इस घोषणा से आम जनता में खुशी की लहर है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या बीमा कंपनियां बिना किसी समायोजन के इस बदलाव को स्वीकार

EDITED BY: Vishal Yadav

UPDATED: Wednesday, September 17, 2025

GST on Health and Life Insurance: हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस पर GST खत्म क्या सच में मिलेगा फायदा?

GST on Health and Life Insurance: 22 सितंबर से Health and Life Insurance पर जीएसटी (GST) खत्म होने जा रहा है। इस घोषणा से आम जनता में खुशी की लहर है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या बीमा कंपनियां बिना किसी समायोजन के इस बदलाव को स्वीकार कर लेंगी? विशेषज्ञों का मानना है कि मामला इतना आसान नहीं है।

GST on Health and Life Insurance

असल में, अब तक इंश्योरेंस कंपनियां कमीशन, ब्रोकरेज, आईटी सर्विसेज, ऑफिस रेंट और क्लेम प्रोसेसिंग जैसी सेवाओं पर चुकाए गए जीएसटी का इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) क्लेम कर पाती थीं। लेकिन जैसे ही ये कैटेगरी जीएसटी से मुक्त हुई, इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ भी खत्म हो गया। यानी कंपनियों की लागत बढ़ जाएगी और संभावना है कि यह बढ़ा हुआ खर्च अंततः ग्राहकों पर डाला जाएगा।

सीबीआईसी (CBIC) ने 16 सितंबर को स्पष्ट किया कि 22 सितंबर से लागू नए स्लैब के तहत हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस को एक्सेम्प्ट कैटेगरी में रखा जाएगा। ऐसे में इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलेगा। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर इन पॉलिसीज को निल रेटेड कैटेगरी में रखा जाता तो आईटीसी का लाभ मिलता। लेकिन छूट दिए जाने के कारण यह लाभ खत्म हो गया है।

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GST on Health and Life Insurance: हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस पर GST खत्म क्या सच में मिलेगा फायदा?

विशेषज्ञों का कहना है कि इंश्योरेंस कंपनियों के करीब 25 से 30% ऑपरेशनल खर्चों पर जीएसटी लगता है। इनमें ब्रोकरेज कमीशन, आईटी सर्विस, एएमसी, क्लेम प्रोसेसिंग और ऑफिस रेंट जैसे प्रमुख खर्च शामिल हैं। अब इन पर इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलने से कंपनियों की लागत 5% से अधिक बढ़ सकती है। और यह बोझ पॉलिसी होल्डर्स तक पहुँचने की पूरी संभावना है।

अस्पताल और बीमा कंपनियों का विवाद

इंश्योरेंस सेक्टर पहले से ही अस्पतालों के साथ विवादों में उलझा हुआ है। हाल ही में नीवा बूपा ने मैक्स अस्पतालों में कैशलेस सेवाएं रोक दी थीं। वहीं एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (AHPI) ने भी अपने सदस्य अस्पतालों को सलाह दी थी कि वे बजाज एलायंस की कैशलेस सुविधा सस्पेंड करें। इस विवाद की जड़ है कॉमन इंपैनलमेंट प्रोग्राम, जिसे आसान कैशलेस इलाज के लिए बनाया गया था लेकिन अब यह टकराव का कारण बन गया है।

बीमा कंपनियों का कहना है कि हर साल मेडिकल खर्च 14-15% की दर से बढ़ रहा है। जबकि अस्पतालों का तर्क है कि वास्तविक महंगाई दर इतनी नहीं है। महामारी के बाद से इलाज की लागत दोगुनी हो चुकी है। सैनिटेशन और बायोमेडिकल वेस्ट निपटान जैसे अतिरिक्त चार्ज अब भी मरीजों के बिल में जोड़े जा रहे हैं। अस्पताल प्रशासनिक खर्च भी बिल में शामिल करता है, जिससे बीमा कंपनियों पर दबाव और बढ़ जाता है।

उपभोक्ता पर असर

महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या उपभोक्ताओं को वास्तव में लाभ मिलेगा? विशेषज्ञों का मानना है कि जीएसटी हटने से 18% टैक्स तो नहीं लगेगा, लेकिन बीमा कंपनियों की बढ़ी लागत का कुछ हिस्सा ग्राहकों तक ज़रूर पहुँचेगा। अनुमान है कि पॉलिसी होल्डर्स को प्रीमियम में 12-14% तक की बचत ही वास्तविक रूप से मिल पाएगी।

Health and Life Insurance प्रीमियम पर जीएसटी हटाना उपभोक्ताओं के लिए राहत भरा कदम लगता है। लेकिन इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ खत्म होने से बीमा कंपनियों की लागत बढ़ेगी, जिसका असर प्रीमियम दरों पर पड़े बिना नहीं रहेगा। बढ़ते हेल्थकेयर कॉस्ट और अस्पतालों के साथ जारी विवाद से यह साफ है कि अंतिम बोझ कहीं न कहीं उपभोक्ताओं पर ही डाला जाएगा।

GST on Health and Life Insurance हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस पर GST खत्म: क्या सच में मिलेगा फायदा?

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