Delhi Cloud Seeding: दिल्ली और एनसीआर की जहरीली हवा से राहत पाने के लिए सरकार ने इस बार एक नया कदम उठाया — Cloud Seeding। दिवाली के बाद हवा में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया था। कई इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) ने 1000 का आंकड़ा पार कर लिया था। पटाखे, पराली और गाड़ियों से निकलने वाले धुएं ने मिलकर हवा को सांस लेने लायक नहीं छोड़ा। इसके बाद दिल्ली सरकार ने आईआईटी कानपुर की मदद से 28 अक्टूबर को क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया, लेकिन उम्मीदों के मुताबिक बारिश नहीं हुई।

Delhi Cloud Seeding पर IIT कानपूर की रिपोर्ट !
आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के मुताबिक, क्लाउड सीडिंग के लिए दिल्ली का मौसम सही नहीं था। हवा में नमी का स्तर केवल 10 से 15 प्रतिशत था, जबकि सफल क्लाउड सीडिंग के लिए 50 प्रतिशत नमी जरूरी होती है। इसके चलते बारिश नहीं हो सकी। अब सवाल ये है कि आखिर क्लाउड सीडिंग होती क्या है और क्यों इससे बारिश हर बार नहीं हो पाती?
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तरीका है, जिसके ज़रिए कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) कराई जाती है। इस प्रक्रिया में बादलों में कुछ खास रसायन जैसे Silver Iodide या Sodium Chloride (नमक) छोड़े जाते हैं। ये केमिकल्स बादलों में मौजूद पानी की बूंदों को आपस में जोड़ते हैं, जिससे वे भारी होकर नीचे गिरती हैं और बारिश होती है। यह खोज 1946 में अमेरिका में गलती से हुई थी जब एक वैज्ञानिक ने फ्रीजर में ड्राई आइस गिरा दी थी और बर्फ के क्रिस्टल बन गए थे।
क्लाउड सीडिंग के लिए कुछ शर्तें पूरी होना जरूरी है — बादलों में पर्याप्त नमी, सही तापमान, और हवा की दिशा स्थिर होनी चाहिए ताकि केमिकल्स अपने लक्ष्य तक पहुंच सकें। दिल्ली में इस बार नमी कम थी और बादल सूखे थे, इसलिए प्रयोग असफल रहा।
कौन से देशों ने किया है Cloud Seeding का इस्तेमाल ?
दुनिया के कई देशों ने क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया है। चीन ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक से पहले आसमान साफ करने के लिए इसका इस्तेमाल किया था। वहीं, यूएई में बारिश बढ़ाने के लिए इसका प्रयोग नियमित रूप से किया जाता है। अमेरिका बर्फबारी बढ़ाने के लिए इसका उपयोग करता है ताकि नदियों और झीलों में पानी का स्तर बनाए रखा जा सके।
भारत में भी महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों ने सूखे से राहत पाने के लिए क्लाउड सीडिंग कराई थी। हालांकि, कई बार इसके नतीजे उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे। सोलापुर में 2017 से 2019 के बीच हुए प्रयोग में करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद बारिश में केवल 18% की बढ़ोतरी हुई।
आईआईटी कानपुर के डायरेक्टर मनिंद्र अग्रवाल के मुताबिक, दिल्ली में मौजूदा क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट की लागत करीब ₹3.5 करोड़ है, जिसमें 10 बार बारिश कराने की कोशिश की जाएगी। पूरी सर्दियों में लगातार सीडिंग करने पर खर्च ₹25 करोड़ तक जा सकता है। फिलहाल, यह एक महंगा और अनप्रिडिक्टेबल प्रोसेस है जो सिर्फ अस्थायी राहत देता है।
सीपीसीबी के आंकड़ों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग से पहले हवा में पीएम 2.5 का स्तर 221 से 230 था जो प्रयोग के बाद घटकर 203 हुआ — यानी फर्क बहुत मामूली रहा। जाहिर है, दिल्ली के लिए यह केवल एक टेंपरेरी सॉल्यूशन है। असली राहत तब मिलेगी जब प्रदूषण के स्रोतों को ही नियंत्रित किया जाएगा।






