CBSE: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने देशभर के लाखों छात्रों के लिए एक अहम शैक्षणिक बदलाव की घोषणा की है। बोर्ड ने निर्णय लिया है कि अब 9वीं और 11वीं कक्षा की आंतरिक परीक्षाओं (Internal Exams) में भी वही उत्तीर्ण मानदंड (Passing Criteria) लागू होंगे, जो वर्तमान में 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में प्रचलित हैं। यह फैसला नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के सिद्धांतों और शिक्षण की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के प्रयासों के तहत लिया गया है।
क्या है नया नियम?
अभी तक CBSE 9वीं और 11वीं कक्षा के छात्रों के लिए स्कूल अपने स्तर पर अलग-अलग पासिंग नियम अपनाते थे। कई स्कूलों में 33% से लेकर 40% तक न्यूनतम अंक निर्धारित थे, वहीं कुछ स्कूल आंतरिक मूल्यांकन में ज्यादा छूट देते थे। लेकिन CBSE के नए निर्देश के बाद अब इन दोनों कक्षाओं के लिए नियम एकसमान होंगे —
छात्र को प्रत्येक विषय में न्यूनतम 33% अंक प्राप्त करने होंगे।
इसमें थ्योरी और प्रैक्टिकल/आंतरिक मूल्यांकन, दोनों में अलग-अलग 33% अंक लाना अनिवार्य होगा।
किसी एक भाग (थ्योरी या प्रैक्टिकल) में फेल होने पर छात्र को पास नहीं माना जाएगा, भले ही कुल अंक पर्याप्त हों।
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क्यों किया गया बदलाव?
CBSE के अधिकारियों के अनुसार, कई बार देखा गया है कि 9वीं और 11वीं कक्षा में पासिंग क्राइटेरिया अपेक्षाकृत आसान होने के कारण छात्र लापरवाह हो जाते हैं। इससे न केवल उनकी पढ़ाई पर असर पड़ता है, बल्कि अगले साल 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में उनका प्रदर्शन भी प्रभावित होता है।
इस बदलाव से छात्रों में शुरू से ही गंभीरता और अनुशासन बढ़ेगा, ताकि वे उच्च कक्षाओं में जाने से पहले आवश्यक बुनियादी ज्ञान और कौशल हासिल कर सकें।
स्कूलों पर असर
नए नियम लागू होने से स्कूलों को भी अपनी आंतरिक मूल्यांकन प्रणाली में सुधार करना होगा। शिक्षकों को अब 9वीं और 11वीं कक्षा में भी बोर्ड स्तर के पैटर्न के अनुसार परीक्षा और मूल्यांकन करना होगा।
- प्रश्नपत्र तैयार करते समय थ्योरी और प्रैक्टिकल का संतुलन बनाए रखना होगा।
- आंतरिक मूल्यांकन में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करनी होगी।
- छात्रों की कमजोरियों की पहचान कर समय रहते अतिरिक्त कक्षाओं या मार्गदर्शन की व्यवस्था करनी होगी।
छात्रों के लिए फायदे
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव छात्रों के लिए लंबे समय में लाभदायक होगा।
- बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी पहले से – अब 9वीं और 11वीं में ही बोर्ड जैसे पैटर्न से पढ़ाई करने पर छात्रों का आत्मविश्वास बढ़ेगा।
- अनुशासन और नियमितता – पास होने के लिए सभी विषयों में अच्छा प्रदर्शन करना अनिवार्य होने से छात्र हर विषय पर बराबर ध्यान देंगे।
- कम बैकलॉग – उच्च कक्षाओं में कमजोर नींव के कारण विषयों में फेल होने की संभावना घटेगी।
चुनौतियां भी होंगी
हालांकि कुछ शिक्षकों और अभिभावकों का मानना है कि यह बदलाव अचानक लागू करने से कमजोर छात्रों पर अतिरिक्त दबाव बढ़ सकता है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और संसाधन-विहीन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को कठिनाई हो सकती है।
शिक्षा विशेषज्ञों का सुझाव है कि साथ ही रिमेडियल क्लासेस, मेंटोरिंग सेशंस और अतिरिक्त शैक्षणिक सहायता भी उपलब्ध कराई जाए, ताकि यह बदलाव सकारात्मक परिणाम दे सके।
कब से होगा लागू?
CBSE के अनुसार, यह नया पासिंग क्राइटेरिया शैक्षणिक सत्र 2025-26 से लागू होगा। इसका मतलब है कि जो छात्र वर्तमान में 8वीं और 10वीं में पढ़ रहे हैं, उन्हें अगले साल यह नियम अपनाना होगा।
CBSE का यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और छात्रों को बोर्ड परीक्षाओं के लिए बेहतर तरीके से तैयार करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। हालांकि, इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि स्कूल, शिक्षक, अभिभावक और छात्र इस बदलाव को किस तरह अपनाते हैं। सही मार्गदर्शन और सहयोग के साथ, यह निर्णय छात्रों के शैक्षणिक भविष्य को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है।