Adani Land Lease: बिहार के भागलपुर में सरकार ने 1020 एकड़ जमीन अडानी पावर ग्रुप को सिर्फ ₹1 की लीज़ पर देने का निर्णय लिया है। यह लीज़ एक साल की नहीं बल्कि 33 साल की है।
कांग्रेस ने इस डील पर बड़ा सवाल उठाया है। उनका कहना है कि इतनी बड़ी प्रॉपर्टी नाम मात्र में देना फेवरिटिज़्म का साफ संकेत है।
Adani Land Lease: बीजेपी का पक्ष
बीजेपी का कहना है कि –
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यह जमीन ओपन टेंडर के जरिए दी गई।
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जो भी कंपनी सबसे कम दाम में बिजली सप्लाई करेगी, उसे कॉन्ट्रैक्ट मिलेगा।
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अडानी ग्रुप ने सबसे कम दाम पर बोली लगाई, इसलिए उसे चुना गया।
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Adani Land Lease विवाद के पांच बड़े मुद्दे
1. ₹1 में प्रॉपर्टी क्यों दी गई?
सरकार का कहना है कि कॉरपोरेट सेक्टर को आकर्षित करने और रोजगार पैदा करने के लिए लैंड इंसेंटिव दिया गया है। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि यह साफ-साफ पक्षपात है।
2. 10 लाख पेड़ों की बलि
- इस जमीन पर 10 लाख आम और लीची के पेड़ हैं। सभी पेड़ काटने होंगे ताकि थर्मल पावर प्लांट बनाया जा सके।
- यह पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है।
- करोड़ों रुपये का नुकसान सिर्फ फलों के उत्पादन में होगा।
3. किसानों को जबरन साइन कराने का आरोप
स्थानीय लोगों का दावा है कि उनकी जमीनें दबाव और मजबूरी में अधिग्रहित की गईं। कांग्रेस ने कई वीडियो भी जारी किए हैं जिनमें ग्रामीण शिकायत कर रहे हैं कि सही मुआवजा नहीं मिला।
4. 29,000 करोड़ का प्रोजेक्ट
अडानी पावर का यह प्रोजेक्ट लगभग ₹29,000 करोड़ का है।
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बीजेपी का दावा: इससे बिहार में रोजगार बढ़ेगा।
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विपक्ष का सवाल: रोजगार तो आएगा लेकिन जमीन और पर्यावरण की कीमत पर।
5. चुनाव से ठीक पहले डील क्यों?
बिहार में दो-तीन महीने बाद चुनाव होने वाले हैं। ऐसे समय पर यह बड़ा कॉन्ट्रैक्ट देना चुनावी राजनीति से जुड़ा फैसला माना जा रहा है।
थर्मल पावर प्लांट की असलियत
लोकेशन का चुनाव
अडानी को जमीन गंगा नदी और झारखंड बॉर्डर के पास दी गई है।
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पानी की सप्लाई गंगा से मिलेगी।
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कोयला झारखंड से आसानी से लाया जा सकेगा।
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इससे ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट कम हो जाएगा।
बिजली की कीमत पर सवाल
बिहार सरकार को अडानी ग्रुप बिजली ₹6.8 प्रति यूनिट में बेचेगा।
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एमपी में अडानी यही बिजली ₹5.8 में बेचता है।
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यूपी में कीमत सिर्फ ₹5.40 है।
जबकि बिहार में जमीन और लेबर सबसे सस्ती है, फिर भी दाम सबसे ज्यादा रखे गए।
पर्यावरण और रोजगार का संतुलन
पेड़ कटेंगे – रोजगार मिलेगा
सरकार का कहना है कि इससे हजारों नौकरियां मिलेंगी।
लेकिन सवाल यह है कि –
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क्या रोजगार पेड़ों की इतनी बड़ी बलि के लायक है?
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क्या बिहार में कोई और जगह नहीं थी जहां यह प्रोजेक्ट लगाया जा सके?
जनता से सवाल
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क्या इतनी बड़ी जमीन सिर्फ ₹1 में देना सही है?
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क्या 10 लाख पेड़ काटना बिहार के पर्यावरण को तबाह नहीं कर देगा?
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क्या यह डील वास्तव में जनता के भले के लिए है या सिर्फ कॉर्पोरेट फेवरिटिज़्म?
आने वाले चुनावों में यह बड़ा मुद्दा बन सकता है।
बिहार की जनता को अब तय करना होगा कि वह रोजगार बनाम पर्यावरण की इस डील को किस नजर से देखती है।