Sahara, Adani, SC: सहारा समूह की रियल एस्टेट आर्म SICCL (Sahara India Commercial Corporation Ltd.) ने सुप्रीम कोर्ट से अपने कई प्रमुख परिसंपत्तियों को एक बार में बेचने की अनुमति मांगते हुए याचिका दायर की है। प्रस्तावित खरीदार Adani Properties Pvt. Ltd. है — और अगर शीर्ष अदालत इस सौदे को मंजूरी दे देती है तो सहारा की दर्जनों विवादास्पद प्रॉपर्टी एक साथ अडानी समूह के हाथों में चली सकती हैं। इस कदम का मूल मकसद सहारा के छोटे-छोटे निवेशकों को बकाया रकम लौटाने के लिये फंड जुटाना बताया गया है।
नीचे आसान भाषा में इस पूरे मामले के अहम पहलू दिए गए हैं।
क्या बिका जाने वाला है — किन संपत्तियों की बात चल रही है?
सहारा की याचिका में आरोहित सूची के मुताबिक लगभग 88 से अधिक प्रॉपर्टीज़ का जिक्र किया गया है। इनमें प्रमुख हैं — एमबी वैली (मुंबई में फैला प्रोजेक्ट), सहारा स्टार होटल (मुंबई के नज़दीक), लखनऊ में सहारा सिटी जैसी बड़ी जमीनें और देश के कई राज्यों (महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड इत्यादि) में फैली कई संपत्तियाँ। सहारा का कहना है कि साथ में चल रहे क्लेम्स और अटैचमेंट के बावजूद एक ही खरीदार को एक शॉट में बेचना जटिलताओं को कम करेगा।
बेचने की वजह — पैसा किसको लौटाना है?
कंपनी का तर्क साफ है: सहारा का विवादित इतिहास और सेबी के निर्देशों के चलते उसे निवेशकों को रकम लौटानी है। सालों पहले सेबी ने सहारा की कुछ कंपनियों द्वारा जारी किए गए विशेष प्रकार के बॉंड/सचिटिफिकेट पर विवाद उठाये और निवेशकों को मूलधन व ब्याज के साथ भुगतान करने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और उसके बाद की कार्यवाही के कारण सहारा पर बड़ी देनदारी बन चुकी है और समूह का दावा है कि संपत्तियों की बिक्री से यह राशि जमा कराकरRefund/SEBI के समक्ष जमा की जाएगी।
क्या पैसा निवेशकों के खाते में जाएगा?
याचिका में साफ कहा गया है कि बिक्री से मिलने वाली राशि SEBI के सहारा रिफंड अकाउंट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देशित किसी खाते में जमा कर दी जाएगी और फिर कोर्ट व सेबी के आदेशों के अनुसार निवेशकों को लौटायी जाएगी। हालांकि दस्तावेजों में यह भी माना गया है कि कई संपत्तियों पर सरकारी एजेंसियों या निचली अदालतों के आदेशों के कारण क्लेम/अटैचमेंट हैं — इसलिए वैल्यूएशन और शुद्ध बिक्री राशि पर भी विवाद संभव है। सहारा ने कहा है कि वैल्यूएशन को सीलबंद कवर में कोर्ट को दिया जाएगा।
पीछे की पृष्ठभूमि — विवाद और सुप्रीम कोर्ट के आदेश
सहारा का विवाद दशकों पुराना है। 2012 में सेबी और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा की कुछ फर्मों को निवेशकों का पैसा ब्याज सहित लौटाने का निर्देश दिया था। बेनामी या बिना अनुमति वाले निवेश/बॉन्ड इश्यू को लेकर सहारा और उसके फाउंडर सुब्रत रॉय के खिलाफ कई कार्रवाइयाँ हुईं; सुब्रत रॉय के जेल जाने और बाद की घटनाओं के बाद समूह की संपत्तियों पर भी कार्रवाई और क्लेम बढ़े। SEBI ने रिफंड अकाउंट बनाया, पर निवेशकों को वांछित मात्रा में और समय पर पैसे लौटाने में देरी रही है — और कई निवेशकों की शिकायतें बनी हुई हैं।
कानूनी चुनौतियाँ और विवादास्पद दावे
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कई संपत्तियाँ पहले से विवादित हैं: सरकारी एजेंसियों ने अटैच किया हुआ है या कोर्ट कसीदगी हैं।
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कुछ हिस्सों पर समूह के अंदर अलग दावे भी उठे हैं — सुब्रत रॉय के निधन के बाद प्रॉपर्टीज़ पर दूसरों के अवैध दावों की आशंका जताई गई है।
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नगर निकायों/स्थानीय प्रशासनों की तरफ से भी नियम उल्लंघन के आरोप (जैसे लखनऊ में सहारा सिटी के कुछ हिस्सों पर लाइसेंस शर्तों के उल्लंघन के चलते सीलिंग की तैयारी) सामने आयी हैं।
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वैल्यूएशन और किसे कितनी रकम मिलेगी — यह सीलबंद बोली/वैल्यूएशन पर निर्भर करेगा और सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी पर।
आगे का रास्ता — क्या होगा और कब?
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर अगली सुनवाई 14 अक्टूबर को निर्धारित की गई है (याचिका में यह तारीख दी गई है)। शीर्ष अदालत इस प्रस्ताव को स्वीकार करे या न करे — दोनों परिस्थितियाँ सम्भव हैं। यदि कोर्ट अनुमति देती है तो अडानी समूह को तय राशि सुप्रीम कोर्ट/SEBI के निर्देशानुसार जमा करनी होगी और फिर निवेशकों को रिफंड के क्रम में भुगतान शुरू किया जा सकेगा। यदि अनुमति न मिले, तो सहारा को अन्य वैकल्पिक रास्ते तलाशने होंगे और निवेशकों को भुगतान में और देरी संभव है।
निवेशकों के लिए क्या अर्थ है?
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सकारात्मक परिदृश्य: यदि सौदा एक बार में सम्पन्न हो गया और कोर्ट द्वारा बिक्री की शुद्ध राशि SEBI रिफंड खाते में ट्रांसफर कर दी गयी तो वर्षों से पेंडिंग कई निवेशकों को राहत मिल सकती है।
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नकारात्मक परिदृश्य: संपत्तियों पर क्लेम, वैधता के सवाल और स्थानीय प्रशासनिक अड़चनें होने से बिक्री या राशि में कटौती/विलंब संभव है — तब निवेशकों की वसूली लंबी खिंच सकती है।
यह कदम सहारा के लिए एक बड़ा, फैला हुआ और जटिल निर्देशित समाधान दिखता है — «वन शॉट, वन बायर» मॉडल के ज़रिए विवादास्पद संपत्तियों को एक ही बार में निपटाकर निवेशकों को भुगतान करना। पर असली परीक्षा सुप्रीम कोर्ट और वैधानिक एजेंसियों के सामने है: क्या यह प्रस्ताव पारदर्शी, न्यायोचित और निवेशकों की हित में है या नहीं। सुनवाई के बाद ही पूरा परिदृश्य साफ होगा — और निवेशकों तथा हितधारकों के लिए सबसे बड़ा सवाल यह रहेगा कि अंततः कितनी राशि और कब तक उनके पास पहुंचेगी।