YouTube Trump Settlement: गूगल की स्वामित्व वाली वीडियो स्ट्रीमिंग साइट YouTube को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को लगभग ₹2100 करोड़ का भारी-भरकम मुआवज़ा देना होगा। यह रकम अमेरिका की अदालत में चल रहे उस मुकदमे के निपटारे के एवज में तय हुई है, जो ट्रंप ने साल 2021 में YouTube के खिलाफ दायर किया था।
मामला उस समय का है जब 6 जनवरी 2021 को अमेरिकी संसद भवन कैपिटल हिल (Capitol Hill) पर ट्रंप समर्थकों ने हमला कर दिया था। इस हिंसक घटना में पाँच लोगों की मौत हुई थी, जबकि 100 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए थे। हज़ारों लोगों ने यह मानते हुए कि राष्ट्रपति चुनावों में धांधली हुई है, संसद परिसर में घुसपैठ कर ली थी। इस घटना के बाद पूरे अमेरिका में हलचल मच गई और सोशल मीडिया कंपनियों पर कार्रवाई का दबाव बढ़ा।
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इसी पृष्ठभूमि में YouTube ने ट्रंप का आधिकारिक चैनल निलंबित कर दिया। प्लेटफॉर्म ने साफ तौर पर यह नहीं बताया था कि ट्रंप ने कौन सा नियम तोड़ा, लेकिन उसका कहना था कि हिंसा बढ़ने की आशंका को देखते हुए यह कदम उठाना पड़ा। ट्रंप ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया और अदालत का दरवाज़ा खटखटाया।
करीब चार साल तक चले इस कानूनी संघर्ष का नतीजा अब ट्रंप के पक्ष में आया है। समझौते के तहत YouTube को ट्रंप और अन्य प्रभावित लोगों को कुल $4.5 मिलियन (लगभग ₹2100 करोड़) की राशि चुकानी होगी। दिलचस्प बात यह है कि ट्रंप ने इस मुआवज़े में से करीब ₹1950 करोड़ व्हाइट हाउस के नए बॉलरूम निर्माण के लिए दान करने का ऐलान किया है। शेष राशि उन व्यक्तियों को दी जाएगी, जिनके अकाउंट भी इस अवधि में निलंबित किए गए थे और जिन्होंने YouTube पर सेंसरशिप का आरोप लगाया था।
यह विवाद केवल YouTube तक सीमित नहीं रहा। 6 जनवरी की घटना के बाद ट्विटर (अब एक्स) और फेसबुक ने भी ट्रंप के अकाउंट निलंबित कर दिए थे। ट्रंप ने इन दोनों कंपनियों पर भी मुकदमे दायर किए। परिणामस्वरूप फेसबुक की पैरेंट कंपनी Meta को लगभग ₹200 करोड़ और एक्स को ₹900 करोड़ का मुआवज़ा देना पड़ा।
ट्रंप की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2023 में जब वह YouTube पर वापस लौटे, तो उनके चैनल ने तेजी से लोकप्रियता हासिल की और आज उनके करीब 40 लाख सब्सक्राइबर हैं।
यह फैसला ट्रंप के लिए न केवल कानूनी जीत है, बल्कि सोशल मीडिया कंपनियों के लिए भी एक चेतावनी है कि वे कंटेंट मॉडरेशन और निलंबन की कार्रवाई में पारदर्शिता बरतें। ट्रंप पहले भी कई बार यह आरोप लगाते रहे हैं कि बड़ी टेक कंपनियां उन्हें राजनीतिक कारणों से निशाना बनाती हैं। अब अदालत का यह निर्णय उन आरोपों को और मज़बूती देता है।
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। YouTube और अन्य टेक कंपनियों के लिए यह मामला एक बड़ी सीख है, वहीं ट्रंप समर्थकों के लिए यह जीत एक नैरेटिव को मज़बूती देती है।