Karur Stampede Tragedy: तमिलनाडु के करूर ज़िले में 27 सितंबर की शाम हुई भगदड़ ने पूरे राज्य को हिला दिया। इस हादसे में अब तक 39 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जिनमें 16 महिलाएँ, 13 पुरुष और कई बच्चे शामिल हैं। घटना विजय की राजनीतिक रैली के दौरान हुई, जो तमिलगा विक्टरी कजगम पार्टी के प्रमुख और अभिनेता-नेता हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस रैली के लिए प्रशासन ने 10,000 लोगों की अनुमति दी थी और 20,000 लोगों तक की व्यवस्था करने की बात कही थी। लेकिन मैदान में 27,000 से अधिक लोग पहुँच गए। भीषण भीड़, गर्मी और पानी की कमी ने हालात और बिगाड़ दिए। विजय छह घंटे की देरी से मंच पर पहुँचे और भाषण शुरू किया, लेकिन भीड़ में लोगों की हालत खराब होती गई। पानी की मांग उठी, कुछ लोग बेहोश होकर गिरने लगे। विजय ने कई बार भाषण रोका और फिर शुरू किया, जिससे स्थिति और असामंजस्यपूर्ण हो गई।
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इंडिया टुडे और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि एंबुलेंस को भीड़ से निकालने में मुश्किल हुई और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। लाठीचार्ज की भी खबरें आईं, जिसने घबराहट को और बढ़ाया।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इस हादसे पर गहरा दुख जताया और मृतकों के परिवारों को ₹1 लाख मुआवजा तथा घायलों के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की। उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में जांच आयोग भी गठित कर दिया है। केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है।
वहीं विजय ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कहा कि उनका दिल टूट गया है और वे इस त्रासदी से बेहद दुखी हैं। उन्होंने मृतकों के परिवारों को ₹20 लाख और घायलों को आर्थिक मदद देने का ऐलान किया। लेकिन सवाल यह है कि क्या मुआवजा ही इंसानी जानों की कीमत है?
रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रशासन ने 500 पुलिसकर्मी तैनात किए थे, पर भीड़ नियंत्रण की कोई ठोस तैयारी नहीं थी। पानी और भोजन जैसी बुनियादी सुविधाएँ नदारद थीं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह हादसा बेहतर प्रबंधन और समय पर फैसले से रोका जा सकता था।
तमिलनाडु में अगले साल चुनाव होने वाले हैं, और विजय की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए प्रशासन और सरकार के बीच खींचतान पहले से ही चर्चा में रही है। विजय ने पहले भी राज्य सरकार पर रैलियों की अनुमति में बाधा डालने का आरोप लगाया था। इस बार करूर की त्रासदी ने इस बहस को और तीखा कर दिया है।
मूल सवाल अब भी यही है—क्या राजनीतिक सभाओं में भीड़ प्रबंधन के लिए पुलिस और प्रशासन कभी गंभीरता से तैयारी करेंगे? क्या यह हादसा आने वाले समय में सबक बनेगा या कुछ दिनों बाद सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित रह जाएगा?