Chandrachud Babri Masjid Remark: भारत के सबसे संवेदनशील और ऐतिहासिक मामलों में से एक बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद को लेकर एक बार फिर बहस तेज हो गई है। वजह बने हैं देश के पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया DY Chandrachud, जिनका एक हालिया इंटरव्यू सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस इंटरव्यू में उन्होंने बाबरी मस्जिद को लेकर एक ऐसा बयान दिया, जिसने आलोचकों और समर्थकों के बीच नई बहस छेड़ दी।
दरअसल, द न्यूज़ मिनट और न्यूज़ लॉन्ड्री को दिए इंटरव्यू में पत्रकार श्रीनिवासन जैन ने पूर्व सीजीआई से सवाल किया कि जब विवादित ढांचे में हिंदू पक्ष ने डेसीग्रेशन (तोड़-मरोड़/अपवित्रीकरण) कर दावा जताया, तो माहौल बिगड़ा। अगर मुस्लिम पक्ष भी इसी तरह प्रतिक्रिया देता तो क्या हालात अलग होते?
इस पर डीवाई चंद्रचूड़ ने जवाब देते हुए कहा कि अगर हम मान भी लें कि हिंदू पक्ष ने अपवित्रीकरण किया, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मस्जिद का निर्माण ही मूलभूत ‘डेसीग्रेशन’ था। उन्होंने कहा कि इतिहास में जो कुछ हुआ उसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, क्योंकि इस बारे में पुरातात्विक सबूत मौजूद हैं।
उनका कहना था कि आलोचक इतिहास को सिलेक्टिव तरीके से पेश करते हैं। वे कुछ हिस्सों को छोड़कर केवल सुविधाजनक तथ्यों को चुनते हैं और अपनी कहानी गढ़ते हैं।
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जजमेंट और आलोचना पर जवाब
इस इंटरव्यू में उनसे यह भी पूछा गया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह साफ लिखा है कि मस्जिद बनाने के लिए किसी मौजूदा ढांचे को जबरदस्ती गिराने के सबूत नहीं मिले। कोर्ट ने यह माना था कि मस्जिद और प्राचीन ढांचे के बीच कई शताब्दियों का अंतराल था। इस पर चंद्रचूड़ ने कहा कि जिन्होंने फैसले की आलोचना की है, वे मस्जिद के मूलभूत इतिहास को नजरअंदाज कर रहे हैं।
जस्टिस मुरलीधर का तंज और DY Chandrachud का जवाब
यही नहीं, इस मुद्दे पर उड़ीसा हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एस मुरलीधर ने भी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि फैसला जल्दबाजी में दिया गया और यह ‘ऑथरलेस जजमेंट’ था, यानी इसमें स्पष्ट लेखक का नाम नहीं था। साथ ही उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि मध्यस्थता (mediation) की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया गया, जबकि उसके जरिए समझौते की संभावना थी।
DY Chandrachud ने उनके इन बयानों पर तंज कसते हुए कहा कि कई जज रिटायरमेंट के बाद समाज सुधारक बन जाते हैं, शायद जस्टिस मुरलीधर भी वैसा ही करना चाहते हैं। इस पर मुरलीधर ने पलटवार करते हुए कहा कि वे इसे कॉम्प्लीमेंट मानते हैं, क्योंकि वकालत के दिनों से ही वे सामाजिक मामलों और जनहित याचिकाओं से जुड़े रहे हैं।
सोशल मीडिया पर नई बहस
पूर्व सीजीआई का यह बयान और दोनों जजों के बीच की यह अप्रत्यक्ष नोकझोंक अब सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गई है। समर्थक और विरोधी अपने-अपने तर्क दे रहे हैं। बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला 9 नवंबर 2019 को आया था, जब मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई रिटायर होने वाले थे।
अब, पांच साल बाद भी यह विवाद केवल कानूनी नहीं बल्कि राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र बना हुआ है।