Tennis Balls, Tennis Balls Color: टेनिस की दुनिया में जब भी हम किसी मैच को देखते हैं, तो एक चीज़ हमेशा ध्यान खींचती है—वो चमकीली पीली गेंद जो खिलाड़ियों के रैकेट से टकराकर हवा में लहराती है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि टेनिस की गेंदें पीले रंग की ही क्यों होती हैं? क्या ये कोई फैशन स्टेटमेंट है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक और ऐतिहासिक कारण छुपा हुआ है? दरअसल, इसका जवाब हमें इतिहास के पन्नों और टेलीविजन की तकनीकी दुनिया में मिलता है।
Tennis की शुरुआत और शुरुआती गेंदों का रंग
टेनिस, जिसे आज ‘लॉन टेनिस’ के नाम से भी जाना जाता है, की शुरुआत 1870 के दशक में इंग्लैंड से हुई थी। शुरुआती दौर में टेनिस बॉल का रंग पीला नहीं था। तब गेंदें मुख्यतः सफेद या काली हुआ करती थीं। इन गेंदों को हाथ से सिलकर बनाया जाता था और इनमें ऊन या बाल भरे जाते थे। उस समय खेल की दृश्यता या कैमरे की चिंता नहीं थी, क्योंकि टेलीविजन नाम की चीज़ भी आम नहीं थी।
रंगीन टेलीविजन का आगमन और दृश्यता की चुनौती
समय के साथ जैसे-जैसे टेनिस एक अंतरराष्ट्रीय खेल बना और टेलीविजन के माध्यम से लोगों तक पहुंचने लगा, खेल की प्रस्तुति और स्पष्टता महत्वपूर्ण हो गई। 1960 और 70 के दशक में जब रंगीन टेलीविजन का आगमन हुआ, तो खेलों की लाइव ब्रॉडकास्टिंग ने एक नई दिशा पकड़ी। हालांकि इस बदलाव के साथ एक नई समस्या सामने आई—सफेद टेनिस बॉल की दृश्यता।
रंगीन टेलीविज़न पर सफेद या काली गेंद को तेज़ गति के दौरान दर्शकों के लिए ट्रैक करना मुश्किल हो गया। विशेषकर घास के कोर्ट (जैसे विंबलडन) पर सफेद गेंद पृष्ठभूमि में खो जाती थी और दर्शकों को खेल में मज़ा नहीं आता था।
Tennis Balls: पीली गेंद का सुझाव और आधिकारिक स्वीकृति
इसी समय एक बड़ा नाम सामने आया—सर डेविड एटनबरो, जो उस समय बीबीसी (BBC) के लिए काम कर रहे थे। उन्होंने ही सुझाव दिया कि एक ऐसा रंग चुना जाना चाहिए जो टेलीविजन पर सबसे स्पष्ट दिखाई दे। शोध और प्रयोगों के बाद निष्कर्ष निकला कि नियॉन येलो (fluorescent yellow) रंग की गेंद सबसे अच्छी दिखाई देती है।
इसके बाद, 1972 में इंटरनेशनल टेनिस फेडरेशन (ITF) ने एक बड़ा कदम उठाया। उन्होंने निर्णय लिया कि अब आधिकारिक टेनिस टूर्नामेंटों में पीले रंग की गेंदों का इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि टीवी पर खेलने की स्पष्टता बनी रहे और दर्शकों को बेहतर अनुभव मिल सके।
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विंबलडन ने देर से अपनाया
हालांकि ITF ने 1972 में पीली गेंद को मान्यता दी, लेकिन प्रतिष्ठित विंबलडन टूर्नामेंट ने इसे अपनाने में समय लिया। विंबलडन ने 1986 में जाकर पहली बार पीली गेंदों का इस्तेमाल किया। इससे पहले वहां सफेद गेंदों का ही उपयोग होता था। लेकिन जब टेलीविजन दर्शकों की प्रतिक्रिया और तकनीकी लाभ सामने आया, तो विंबलडन को भी अपने फैसले पर पुनर्विचार करना पड़ा।
आज की टेनिस बॉल
आज टेनिस बॉल का पीला रंग न केवल एक मानक बन चुका है, बल्कि यह खिलाड़ियों और दर्शकों दोनों के लिए बेहद उपयोगी है। इस गेंद को “ऑप्टिक येलो” कहा जाता है और इसकी बनावट खास तरह के फेल्ट से की जाती है जिससे यह हवा में कम घर्षण पैदा करती है और आसानी से ट्रैक की जा सके।
निष्कर्ष
तो अगली बार जब आप किसी टेनिस मैच में उस चमकीली पीली गेंद को देख रहे हों, तो जानिए कि उसके पीछे एक लंबा इतिहास, तकनीकी सोच और वैज्ञानिक निर्णय छुपा है। यह सिर्फ एक रंग नहीं है, बल्कि यह दर्शकों के अनुभव को बेहतर बनाने का एक उदाहरण है कि कैसे एक छोटा सा बदलाव खेल की दुनिया में बड़ा फर्क ला सकता है।
