
Dr. Bhimrao Ambedkar: जीवन और शुरुआती संघर्ष
Dr. Bhimrao Ambedkar का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को मध्य प्रदेश के महू (अब मध्य प्रदेश) में एक महार (दलित) परिवार में हुआ था। उनके पिता रामजी सकपाल ब्रिटिश भारतीय सेना में सूबेदार थे, लेकिन अंबेडकर को बचपन से ही जाति-आधारित भेदभाव और सामाजिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। स्कूल में उन्हें अलग बैठाया जाता था, उन्हें पानी पीने के लिए अलग बर्तन का उपयोग करना पड़ता था, और समाज में उनकी मौजूदगी को हेय दृष्टि से देखा जाता था। इन कठिनाइयों के बावजूद, उनकी मां और शिक्षकों का समर्थन, साथ ही उनकी अपनी बुद्धिमत्ता और दृढ़ संकल्प ने उन्हें शिक्षा के मार्ग पर अग्रसर किया।
उपलब्धियाँ और योगदान
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संविधान निर्माता: स्वतंत्र भारत के संविधान के मसौदे को तैयार करने में उनकी नेतृत्व भूमिका सबसे महत्वपूर्ण थी। 29 अगस्त, 1947 को उन्हें संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने समानता, स्वतंत्रता, और भाईचारे के सिद्धांतों को संविधान में शामिल किया, जिसमें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण, लैंगिक समानता, और अल्पसंख्यक अधिकारों की गारंटी शामिल थी। उनकी दृष्टि ने भारत को एक लोकतांत्रिक और समावेशी गणराज्य बनाया।
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सामाजिक सुधारक: अंबेडकर ने छुआछूत और जाति प्रथा के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया। 1927 में उन्होंने महाड़ सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जहां उन्होंने दलितों को सार्वजनिक जलाशय से पानी लेने का अधिकार दिलाया। 1930 में नासिक के कालाराम मंदिर में प्रवेश के लिए सत्याग्रह भी उनके प्रमुख आंदोलनों में से एक था, जो समाज में बदलाव की मांग को दर्शाता था। उन्होंने 1936 में ‘अनुसूचित जाति महासंघ’ की स्थापना की, जो दलितों के अधिकारों के लिए एक संगठित मंच बना।
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बौद्ध धर्म की वापसी: 14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में उन्होंने और उनके लाखों अनुयायियों ने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया, जिसे ‘धम्म दीक्षा’ के नाम से जाना गया। यह कदम सामाजिक मुक्ति, आत्मसम्मान, और जाति व्यवस्था से मुक्ति की उनकी खोज का प्रतीक था। उन्होंने बौद्ध धर्म को मानवता और समानता का मार्ग माना, जो उनकी विचारधारा का आधार बना।
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कानूनी और आर्थिक सुधार: उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दिया और मजदूर वर्ग, किसानों, और महिलाओं के अधिकारों के लिए कानून बनाने में अहम भूमिका निभाई। उनकी पुस्तक द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन ने भारत की आर्थिक नीतियों को प्रभावित किया।
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लेखन और विचारधारा: उनकी रचनाएँ, जैसे अनहैप्पी इंडिया, कास्ट इन इंडिया, हू वर द शूद्राज?, और द बुद्धा एंड हिज धम्म, आज भी सामाजिक चेतना और बौद्धिक चर्चा का हिस्सा हैं। इनमें उन्होंने जाति व्यवस्था की आलोचना की और समानता के लिए वैकल्पिक मार्ग सुझाए।
भारत में Dr. Bhimrao Jayanti का उत्सव
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स्मारक पर श्रद्धांजलि: दिल्ली के संविधान मार्ग पर स्थित ‘भीम ज्योति’ और मुंबई के चैत्यभूमि में उनके स्मारकों पर लोग फूल चढ़ाते हैं और माल्यार्पण करते हैं। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और अन्य नेता भी यहां श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 2025 में, इन स्थानों पर विशेष सजावट और सुरक्षा व्यवस्था देखी गई, जहां हजारों लोग एकत्र हुए।
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सेमिनार और रैलियाँ: स्कूलों, कॉलेजों, और विश्वविद्यालयों में उनके जीवन और विचारों पर सेमिनार, निबंध प्रतियोगिताएं, और जागरूकता रैलियाँ आयोजित की जाती हैं। छात्र और युवा उनके संदेश—”शिक्षा ही वह माध्यम है जो हमें गुलामी से मुक्ति दिलाएगा”—को अपनाते हैं और समाज में बदलाव की शपथ लेते हैं।
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सांस्कृतिक कार्यक्रम: नाटक, गीत, और नृत्य के माध्यम से उनकी शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाया जाता है। दलित समुदाय विशेष रूप से उनके गीत ‘बुद्ध भगवान’ और ‘अंबेडकर अमर रहें’ गाकर श्रद्धा व्यक्त करता है। कई जगह पारंपरिक लोक नृत्य और संगीतमय प्रस्तुतियाँ आयोजित होती हैं।
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धर्म परिवर्तन समारोह: उनकी धम्म दीक्षा की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए, कई जगह बौद्ध धर्म अपनाने के समारोह आयोजित होते हैं, जहां लोग उनके बताए मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा लेते हैं।
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सोशल मीडिया पर उत्सव: आज के दिन एक्स, फेसबुक, और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर #AmbedkarJayanti और #BhimJayanti के साथ उनके उद्धरण, तस्वीरें, और वीडियो वायरल होते हैं। 2025 में, लोग उनके विचारों को साझा कर रहे हैं, जैसे “जीवन लंबा होना चाहिए, लेकिन अच्छा होना और भी जरूरी है।” कई संगठन ऑनलाइन लाइव सत्र भी आयोजित कर रहे हैं।
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राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर सम्मान: सरकार द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किए जाते हैं, और कई राज्यों में सार्वजनिक सभाएँ होती हैं। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, और बिहार जैसे राज्यों में विशेष मेले और प्रदर्शनियाँ लगाई जाती हैं, जहां उनकी जीवनी और योगदान को प्रदर्शित किया जाता है।